रत्न गुटिका

रत्न गुटिका क्या है ?

इस गुटिका का निर्माण रत्न के सत्व को अष्ट संस्कारित पारद के साथ विशेष मुहूर्त में सायुज्जीकरण करके किया जाता है. धारण से पूर्व इसका जातक के लिए प्राण-प्रतिष्ठा और अभिमन्त्रण किया जाता है. इसके धारण करने से जातक को रत्न के सम्पूर्ण सकारात्मक प्रभाव का लाभ मिलता है.
 

रत्न गुटिका क्यों धारण करनी चाहिए ?

    आमतौर पर बाज़ार में शुद्ध प्रकृतिक रत्न मिलना दुर्लभ होता है.क्यूंकि रत्न की प्राप्ति के समय उसकी संरचना में विभिन्न प्रकार के दोष मिलते हैं. इस कारण रत्न की आकृति देने के लिए जब मशीनों से पॉलिश की जाती है तो मात्र थोड़े से हिस्से से ही पूर्ण शुद्ध और निर्दोष रत्न निकलता है . बाकि अधिकांश हिस्से में गड्ढे, टूट-फुट, अशुभ चिन्ह, धब्बे आदि होते हैं. परन्तु व्यवसायिक लाभ कमाने हेतु ऐसे दोषों को विभिन्न प्रकार के बनावटी तरीकों से छिपा कर बाज़ार में बेच दिया जाता है.
यही कारण है की बाज़ार में ग्राहक को एक ही वजन का रत्न विभिन्न कीमतों में मिल जाता है. विक्रेता कभी उसकी गुणवत्ता में अंतर को उजागर नही करता.
और इस प्रकार ग्राहक को ठग लिया जाता है. कालांतर में ऐसा दोषपूर्ण रत्न को धारण करने के बाद भी अपेक्षित लाभ नही मिलता, अपितु अनेक बार नुकसान भी होने लगता है. इस  पर ग्राहक का विश्वास ज्योतिष से उठने लगता है.
बाज़ार की इस धोखाधड़ी से बचने हेतु ही पुरातन काल से विभिन्न रसशास्त्रों में पारद में प्राकृतिक रत्न के सत्व के साय्युजिकरण द्वारा रत्न गुटिका बनाने का उल्लेख किया गया.
अष्ट संस्कारित पारद के साथ मिलकर रत्न सत्व जातक को साधारण  रत्न की अपेक्षा सैकड़ों गुना लाभ देता है. 
क्यों धारण करनी चाहिए

 

 नवपाषाणम क्या है?

नवपाषाणम भारत में सिद्ध संत बोगर द्वारा 5,000 साल पहले तैयार किया गया एक रासायनिक संयोजन है। यह एक नौ जहरीली जड़ी-बूटियों का मिश्रण है।
 
संत बोगर ने कहा कि प्रकृति में 32 प्रकार के प्राकृतिक विष (दवाएं) और 32 प्रकार के संश्लेषित विष (दवाएं) पाए जाते हैं। इनमें से किन्हीं 9 को मिलाकर एक दिव्य यौगिक “नवपाषाणम” तैयार किया जा सकता है।
 
उन्होंने स्वयं भगवान मुरुगा के एक देवता का निर्माण किया और इसे पलानी, तमिलनाडु, भारत में स्थापित किया। वहां लोग सदियों से इसके दिव्य आयुर्वेदिक गुणों का लाभ उठा रहे हैं।
 
शास्त्र “गोरक्ष संहिता” में भी इन तत्वों द्वारा नवपाषाणम के निर्माण के लिए 9 दिव्य रत्नों का वर्णन किया गया था। इन तत्वों को एक साथ मिला कर दिव्य जड़ी बूटियों के अर्क के साथ संयोजित किया जाता है।
 
संयोजन प्रक्रिया के दौरान, नौ विष औषधीय और आध्यात्मिक गुणों के साथ एक शक्तिशाली नए रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में प्रयुक्त नौ औषधीय खनिज हैं:

1. गुलाबी स्फटिक (Pink Crytstal ) 2. लाजवर्त (Lapis Lazuli ) 3. जंगली माणिक ( Jungle Ruby ) 4. मोती (Pearl ) 5. हरिताश्म (Jade Stone ) 6. नीलपाषाण रत्न (Kyanite Clearstone ) 7. दुर्लभ हरा स्फटिक ( Green Aventurine) 8. दुर्लभ सल्फर कॉपर स्फटिक (Sulphur Stone Copper ) 9. प्राकृतिक ताम्र सत्व ( Natural Copper)

 
 

नवपाषाणम के लाभ

  • नवपाषाणम को अत्यधिक उच्च सकारात्मक ऊर्जा के लिए जाना जाता है | इसे एक उत्कृष्ट औषधि के रूप में भी माना जाता है। नवपाषाणम आत्म को जगाने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है जो तब नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करना जानता है।
  • नवपाषाणम आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है और कुंडलिनी चक्रों को संपादित करता है।
  • यह कुंडलिनी को जगाने में सहायक होता है।
  • नवपाषाणम धारण करने से नकारात्मक ऊर्जा का  प्रभाव निम्न हो जाता है। यह पर्यावरण की मुक्त नकारात्मक ऊर्जा से पूर्ण सुरक्षा प्रदान करता है।
  • गोरक्ष संहिता के अनुसार, इसका उपयोग कई दोषों को दूर करने के लिए किया जा सकता है। जैसे मंगल दोष, पितृ दोष, काल सर्प दोष और पाप ग्रहों से संबंधित कई समस्याएं।
  • नवपाषाणम को धारण करने से पूर्ण सकारात्मक ऊर्जा, तीव्र मस्तिष्क और स्वस्थ शरीर मिलता है।
  • यह साधना में विशेष रूप से फलदायी होता है और मनोकामना और सफलता लाता है।
 

नवपाषाणम के उपयोग

नवपाषाणम का उपयोग नवपाषाणम माला, नवपाषाणम गुटिका , नवपाषाणम शिवलिंग या किसी अन्य देवता की मूर्ति के रूप में किया जा सकता है।
नवपाषाणम के मोतियों से बनी माला को धारण करने से उच्च स्तर के आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। 54 या 108 मनकों की माला से जाप करने से, न केवल पारद की माला का लाभ मिलता है, अपितु नौ दिव्य प्राकृतिक रत्नों की ऊर्जा से भी लाभ प्राप्त होता है।
इस माला को गले में धारण करने और ध्यान करने से साधक की आभा में सकारात्मक और दिव्य परिवर्तन होते हैं। उसकी आभा फैलने लगती है। इसके साथ ही उसकी कुंडलिनी में जागृति की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
नवपाषाणम शिवलिंग का महत्व पारदेश्वर शिवलिंग के समान है। पारद शिवलिंग से अधिक लाभ कोई दे सकता है तो वह है नवपाषाणम शिवलिंग। पूरे स्थल के वास्तु दोष दूर होने लगते हैं। इसके लिए नवपाषाणम बाणलिंगम या नवपाषाणम शिवलिंग को अपने निवास या व्यावसायिक स्थल पर प्रतिष्ठित किया जाता है।
इसकी निश्चित परिधि में रहने वाले प्राणियों के पाप मिटने लगते हैं और उनके जीवन में शुभता का विस्तार होने लगता है। शिवलिंग के विशेष अवसरों पर रुद्राभिषेक और जो व्यक्ति प्रतिदिन जलाभिषेक करता है, वह जन्म-जन्मान्तर के दुर्भाग्य का नाश करता है।
जलाभिषेक करने और प्रसाद के रूप में लेने के बाद व्यक्ति के सूक्ष्म शरीर में आश्चर्यजनक परिवर्तन होते हैं। प्राण कोश, जो उसकी आभा में देवत्व का कारण बनता है और शरीर की कोशिकाओं में विषाक्त तत्वों का क्षरण करता है। यह उसे अद्भुत अंकगणित और शारीरिक फिटनेस देता है। ऐसा होने लगता है और उम्र का असर उसके शरीर पर धीमा पड़ने लगता है।
नवपाषाणम की गोली / गुटिका को गले या कलाई में धारण करने से भी इसका लाभ उठाया जा सकता है। यह उच्च आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक लाभ ला सकता है। नवपाषाणम गुटिका के धारक को जाप के समय पारद गुटिका के लाभ साथ नौ दिव्य प्राकृतिक रत्नों की ऊर्जा का भी लाभ मिलता है।
नवपाषाणम गुटिका को गले में धारण करने और ध्यान करने से साधक की आभा में सकारात्मक और दिव्य परिवर्तन होते हैं। साधक की आभा फैलने लगती है। इसके साथ ही उसकी कुंडलिनी में जागरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
कई धारकों ने कई प्रकार के औषधीय लाभों का भी वर्णन किया है। जैसे, इस गुटिका को एक निश्चित समय तक पानी में रखकर इस पानी को पीना। हालांकि Dhumra Gems इस तरह के किसी भी आंतरिक सेवन की संस्तुति नहीं करता है, शास्त्र इसके कई औषधीय लाभों का भी वर्णन करते हैं।
साथ ही गुटिका को घर या ऑफिस की नींव में भी रखा जा सकता है। जिससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह परिसर में प्रवेश न करे।
 
 
 

नवपाषाणम  विग्रह

1. नवपाषाणम शिवलिंग:

नवपाषाणम शिवलिंग का महत्त्व पारदेश्वर शिवलिंग की भांति होता है. अपितु पारद शिवलिंग से भी ज्यादा लाभ कोई दे सकता है तो वह है नवपाषाणम शिवलिंग. नवपाषाणम से निर्मित बाणलिंग या शिवलिंग को अपने निवास या व्यावसायिक स्थल पर प्राण प्रतिष्ठा कर स्थापित करने पर पुरे स्थल के वास्तु दोष समाप्त होने लगते हैं. उसकी निश्चित परिधि में निवास करने वाले जीवों के पाप क्षय होने लगते हैं और उसके जीवन में शुभता का विस्तार होने लगता है. शिवलिंग का विशेष अवसरों पर रुद्राभिषेक और प्रतिदिन जलाभिषेक करने वाले व्यक्ति का जन्म जन्मान्तर के प्रारब्ध के दुष्फलों का नाश होकर भाग्योदय होने लगता है.

नवपाषाणम शिवलिंग का जलाभिषेक करके उसको प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने पर व्यक्ति के सूक्ष्म शरीर, प्राण कोष में अद्भुत परिवर्तन आने लगते हैं जिससे उसके प्रभामंडल में दिव्यता उत्पन्न होने लगती है और शरीर की कोशिकाओं में विषैले तत्वों का क्षरण होकर उसको अद्भुत अध्यातिमिक एवं शारीरिक अनुकूलता प्राप्त होने लगती है और आयु का प्रभाव उसके शरीर पर धीमा हो जाता है.

उपलब्धतता: नवपाषाणम शिवलिंग / नवपाषाणम  लिंगम दो प्रकार के निर्मित होते हैं.

नवपाषाणम  लिंगम / नवपाषाणम  बाणलिंगम :

– गृह हेतु        : 20 gm वजन से प्रारंभ होकर 400 gm तक.
– मंदिर हेतु     : 120 gm वजन से प्रारंभ होकर 100 kg तक.

नवपाषाणम  शिवलिंग वेदी सहित     :
– गृह हेतु        : 250 gm वजन से प्रारंभ होकर 800 gm तक.
– मंदिर हेतु     : 250 gm वजन से प्रारंभ होकर 100 kg तक.

2. नवपाषाणम श्रीयंत्र

नवपाषाणम श्रीयंत्र भी एक अद्भुत विग्रह होता है. कहा जाता है की किसी भी साधक के घर में पारद श्रीयंत्र की स्थापना होना ही उसके लिए सौभाग्य जागृत होने के लक्षण होते हैं. और उससे भी बढ़ कर यदि नवपाषाणम श्री यन्त्र की स्थापना हो जाये तो सोने पर सुहागा. पारद के साथ अद्भत प्राकृतिक तत्वों का संयोजन साधक को न केवल श्री यन्त्र पूजन से केद्रित होने वाली दिव्य उर्जा का लाभ दिलाता है अपितु उनके साथ उर्जावान दिव्य रत्नों का भी लाभ मिलने लगता है. इस पर तंत्र क्षेत्र की सभी प्रकार की साधनाएं की जा सकती हैं और अगर भूलवश कोई त्रुटी हो जाये नवपाषाणम श्रीयंत्र उस त्रुटी के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली नकारात्मक उर्जा जो उसी क्षण अवशोषित करके साधक की रक्षा कर लेता है.

उपलब्धतता : नवपाषाणम श्रीयंत्र 3kg से प्रारंभ हो जाता है.

3. नवपाषाणम माला

नवपाषाणम के मणकों से बनी माला को धारण करने से उच्च स्तर के अध्यात्मिक एवं आयुर्वेदिक लाभ उठाये जा सकते हैं . 54 अथवा 108 मणकों की माला से जाप करने पर न केवल पारद माला के लाभ मिलते हैं अपितु नौ दिव्य प्राकृतिक रत्नों की उर्जा का लाभ भी मिलने लगता है. इस माला को गले में धारण करके ध्यान लगाने से साधक के प्रभामंडल में सकारात्मक एवं दिव्य परिवर्तन होने लगते हैं. उसके प्रभामंडल का विस्तार होने लगता है. इसके साथ ही उसकी कुंडलिनी में जागरण क्रिया प्रारंभ होने लगती है.

उपलब्धतता : नवपाषाणम माला 54 मनके (175gm), 108 मनके (350gm) में उपलब्ध होती है.

4. नवपाषाणम गुटिका

नवपाषाणम द्वारा बनी गुटिका को गले या कलाई में धारण करके भी इसका लाभ उठाया जा सकता है. इसे धारण करने से उच्च स्तर के अध्यात्मिक एवं आयुर्वेदिक लाभ उठाये जा सकते हैं . इसकी गुटिका के धारक को जाप के समय पारद गुटिका के लाभ मिलते हैं अपितु नौ दिव्य प्राकृतिक रत्नों की उर्जा का लाभ भी मिलने लगता है. इस गुटिका को गले में धारण करके ध्यान लगाने से साधक के प्रभामंडल में सकारात्मक एवं दिव्य परिवर्तन होने लगते हैं. उसके प्रभामंडल का विस्तार होने लगता है. इसके साथ ही उसकी कुंडलिनी में जागरण क्रिया प्रारंभ होने लगती है. अनेक धारकों ने इस गुटिका को निश्चित समय तक जल में रखकर उस जल को पीने से अनेक प्रकार के औषधीय लाभों का भी वर्णन किया है. यद्यपि DHUMRA GEMS ऐसे किसी भी आन्तरिक सेवन की सलाह नही देता, किन्तु शास्त्रों में इसके अनेकानेक औषधीय लाभों का भी वर्णन है.

उपलब्धतता : 10gm, 20gm, 30gm, 50gm की नवपाषाणम गुटिका उपलब्ध होती है.

 

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