Ashta-Dhatu

 अष्टधातु क्या है?

भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही सभी उर्जावान देवस्थलों की उर्जा का मुख्य स्रोत रहा है वहां स्थापित अष्टधातु से निर्मित विग्रह. भगवान विष्णु और उनके विभिन्न स्वरूपों जैसे श्रीकृष्ण, नरसिंह भगवान, श्रीराम आदि के विग्रह, मूर्तियाँ अष्टधातु की बनी होती थीं जिनको आज भी प्रसिद्ध देवस्थलों या म्युजियमों में देखा जा सकता है.

आठ धातुओं यानि सोना, चाँदी, तांबा, रांगा, जस्ता, सीसा, लोहा, तथा पारा (रस) से मिलकर बना होता है । इन सभी धातुओं का अनुपात समान होना चाहिए , यानि की प्रत्येक धातु का अनुपात 12.5% होगा । दीर्घ अनुसन्धान के बाद Dhumra Gems ने अपनी प्रयोगशाला में पूर्ण शास्त्रों में वर्णित विधि से अष्टधातु का निर्माण किया है. अब आप भी शुद्ध अष्टधातु से निर्मित विग्रह को अपने पूजा स्थल में स्थापित करने का सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर धातु में निहित ऊर्जा होती है. धातु अगर सही समय में और ग्रहों की सही स्थिति को देखकर धारण किये जाएं तो इनका सकारात्मक प्रभाव प्राप्त होता है अन्यथा धातु विपरीत प्रभाव भी देता हैं |

अष्टधातु के लाभ 

 
  • वास्तविक अष्टधातु सभी आठ दिव्य धातुओं का एक बहुत शक्तिशाली संयोजन है। यह अपने केंद्र बिंदु के चारों ओर एक बहुत मजबूत सकारात्मक खिंचाव पैदा करता है।
  • इसलिए कोई भी व्यक्ति जो अपने निवास या कार्यस्थल में अष्टधातु की किसी देवी – देवता की मूर्ति की स्थापना करता है। वह दूसरों पर गहरे आकर्षण की क्षमता हासिल करने लगता है। ये मूर्तियाँ अष्टधातु लड्डू गोपाल, अष्टधातु कृष्ण मूर्ति / बाल गोपाल , अष्टधातु शिवलिंग आदि की हो सकती हैं ।
  • वास्तविक अष्टधातु में मानव को दैवीय ऊर्जा से जोड़ने की बहुत बड़ी क्षमता रखता है जिसे हम प्राकृतिक ऊर्जा कह सकते हैं। इससे व्यक्ति आसानी से ध्यान में अग्रसर हो सकता है, अपने चक्रों पर ध्यान केंद्रित कर सकता है एवं अपने आभामंडल को बहुत पवित्र और शक्तिशाली बना सकता है।
  • अगर आप असली अष्टधातु से बनी कोई वस्तु प्रयोग करते हैं या घर में स्थापित करते हैं। आप सभी नौ ग्रहों के कारण होने वाले दुष्प्रभाव को शांत कर सकते हैं।
  • वास्तविक अष्टधातु का पहनने वाले के स्वास्थ्य से गहरा संबंध होता है। यह दिल को भी ताकत देता है और इंसान के कई तरह के रोगों से बचाता है।
  • असली अष्टधातु की अंगूठी या कंगन पहनने से मानसिक तनाव दूर होता है और मन को शांति मिलती है। इतना ही नहीं, वात पित्त कफ इस तरह से तालमेल संतुलित करने में मदद करता है और जिसका स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
  • वास्तविक अष्टधातु का भी मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। असली अष्टधातु को धारण करने से व्यक्ति की त्वरित और सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। धीरे-धीरे समृद्धि बढ़ती है।
  • व्यवसाय के विकास और भाग्य को जगाने के लिए शुभ समय में अष्टधातु का लॉकेट या अष्टधातु की अंगूठी पहनना श्रेष्टकर होता है । यह भाग्य जगाने का एक बहुत ही प्रभावी उपाय है।
 

नकली अष्टधातु के दुष्परिणाम

प्राचीन काल से असली अष्टधातु बनाने की प्रक्रिया को छिपाया गया है। क्योंकि आठ दिव्य धातुओं को एक साथ समांगी रूप में मिलाना अत्यंत दुर्लभ और गुप्त प्रक्रिया है। अतः कई दशकों से धोखेबाज नकली अष्टधातु बनाकर लोगों को बहुत सस्ते दामों में बेचते आ रहे हैं ।

और क्योंकि यह नकली होती है और धातु वास्तविक अनुपात में नहीं होती हैं, अतः इसे प्रयोग में लाने वाले के आसपास नकारात्मक ऊर्जा को सक्रिय करना शुरू कर देता है । और उपयोगकर्ता का जीवन बहुत ही असफल और अस्वस्थ हो जाता है। नकली अष्टधातु के कारण उपयोगकर्ता निराशावादी होने लगा और वह अपने आपको आस-पास के नकारात्मक लोगों और विचारों से प्रभावित पाता है।

साथ ही धातुओं के असंतुलित अनुपात ने उपयोगकर्ता पर ग्रहों के प्रभाव बिगाड़ जाता है जिसके कारण धारक को जीवन में बहुत सारी असुविधाजनक परिस्थितियां का सामना करना पड़ता है ।

इसलिए हमेशा सस्ते और नकली अष्टधातु उत्पादों से सावधान रहें।

अष्टधातु की पहचान कैसे करें?

यद्यपि अष्टधातु का दावा करने वाली किसी भी वस्तु में मौजूद तत्वों की पहचान करने के लिए वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में कई प्रकार के परीक्षण किए जाते हैं, अपितु यह आम लोगों के लिए आसानी से सुलभ या सस्ती नहीं हैं
जो अष्टधातु की कोई छोटी वस्तु या मूर्ति खरीदना चाहते हैं। इनमें से कुछ परीक्षण निम्न हैं :-

Positive metal detection (PMI) with X-ray fluorescence (XRF) and optical emission spectrometry (OES).
Laser Induced Breakdown Spectrometer (LIBS)

लेकिन ये सभी परीक्षण आम लोगों के लिए बहुत सस्ती नहीं हैं, इसलिए हम आम तौर पर कीमत की गणना करके खुद ही तुलना कर सकते हैं। असली अष्टधातु में 12.5% सोना + 12.5% चांदी होती है। तो अष्टधातु की मूल लागत उस अष्टधातु उत्पाद में मौजूद सोने और चांदी की मात्रा से कम नहीं होनी चाहिए। बल्कि उससे बहुत अधिक होना चाहिए, क्योंकि अष्टधातु बनाने के लिए उपयोग करने से पहले सोने और चांदी को भी शुद्ध किया जाता है।

उदाहरण के लिए:

एक अष्टधातु का वजन 100 ग्राम का है। इसमें 12.5 ग्राम शुद्ध स्वर्ण होना चाहिए। मान लीजिए कि 10 ग्राम के स्वर्ण की कीमत 50,000 रुपये है। तो अष्टधातु की कीमत 60-70 हजार रुपये से कम नहीं होनी चाहिए।

वास्तव में यह 2 लाख रुपये से अधिक का होना चाहिए, क्योंकि लागत में अन्य धातुओं की लागत, उनकी शुद्धिकरण प्रक्रिया, लगने वाला समय, हर्बल उत्पाद और अन्य खर्च शामिल होंगे।

तो अब आप आसानी से समझ सकते हैं कि स्थानीय दुकानों या सड़क किनारे विक्रेताओं से कम कीमत वाली अष्टधातु की वस्तु खरीदने पर लोगों को कभी कोई लाभ क्यों नहीं मिला। वे वास्तव में आपको एक साधारण अंगूठी या लोहे आदि से बनी वस्तु बेच रहें हैं ना की असली अष्टधातु ।

विशेष : चूँकि अष्टधातु का शास्त्रसम्मत विधिपूर्वक निर्माण एक दीर्घ प्रक्रिया है. उचित मुहूर्त में कार्य प्रारंभ और पारद के वास्तविक अष्टसंस्कार इस प्रक्रिया के भाग है. अष्टधातु निर्माण करने में लगभग 2-3 माह का समय लग जाता है. इस हेतु ग्राहक के आग्रह पर ही इसका निर्माण किया जाता है. अत: वास्तविक सामग्री प्राप्ति हेतु धैर्य आवश्यक है।

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