Blowing Shankh
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शंख को लक्ष्मी जी का भाई कहा गया है। समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी जी की तरह शंख भी सागर से ही उत्पन्न हुआ है। शंख की गिनती भी समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में होती है. शंख को इसलिए भी शुभ माना गया है, क्योंकि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में इसे धारण करते हैं।
शंख की पहचान क्या है ?
असली शंख की पहचान करने का तरीका है उसे बजाकर देखना। यदि उस शंख में से निकलने वाली ध्वनि में किसी तरह की कंपन नहीं है और आवाज़ खोखली लग रही है तो वह शंख असली नहीं है। वहीँ वामवर्ती शंख का मुख बाई ओर होता है जबकि दक्षिणावर्ती शंख का मुख दाई ओर होता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में शंख रखने की विधि क्या है ?
वास्तु शास्त्र के अनुसार लिविंग रूम में दक्षिण दिशा में रखने से करने से जातक को प्रसिद्धि प्राप्त होती है।
धार्मिक रूप से घर में शंख रखने की विधि क्या है ?
धार्मिक मान्यता के अनुसार शिवरात्रि या नवरात्रि के शुभ दिन शंख को घर में ही मंदिर में रखना होता है। घर में रखने पर शंख धन और समृद्धि को आकर्षित करता है।
शंख नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर रखने और शांति और सकारात्मकता को आमंत्रित करने के लिए जाना जाता है। नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करने के लिए पूरे घर में शंख से जल छिड़कें। घर में शंख की उपस्थिति देवी सरस्वती को जागृत करके ज्ञान लाती है। वास्तु दोष वाले घर में नियमित रूप से शंख बजाने से वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं। जोड़े के बीच के बंधन को मजबूत करने के लिए शयनकक्ष में शंख रखें।
वामावर्ती शंख और दक्षिणावर्ती शंख में क्या अंतर है ?
भगवान् विष्णु दक्षिणावर्ती शंख धारण करते हैं और माता लक्ष्मी वामावर्ती शंख धारण करती हैं. घर में वामावर्ती शंख हो तो धन का कभी अभाव नहीं होता. भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था, जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक सुनी जाती थी.कहा जाता है कि महाभारत की लड़ाई में पाञ्चजन्य शंख की ध्वनि से श्रीकृष्ण पांडवों की सेना उत्साह का संचार करते थे तो दूसरी ओर, कौरव खेमे में भय का माहौल कायम हो जाता था. वामावर्ती शंखों का पेट बायीं तरफ खुला हुआ रहता है. जबकि दक्षिणावर्ती शंख का मुख दायीं तरफ होता है. दक्षिणावर्ती शंख की एक पहचान और भी बताई गई है| इस शंख को कान पर लगाने से ध्वनि सुनाई देती है. वामावर्ती शंख पूजा में शंखनाद के काम आता है, क्योंकि वामवर्ती शंख मुख्य रूप से केवल बजाने के काम आता है और दक्षिणावर्ती शंख का पूजा में विशेष महत्त्व है, श्रीहरि विष्णु ने दक्षिणावर्ती शंख को अपने दाहिने हाथ में धारण कर लिया था।
शंख को कब प्रयोग / बजाना चाहिए?
शंख को पूजा प्रारंभ के समय प्रयोग करना चाहिए। शंख को रात्रिकाल में प्रयोग करना उचित नहीं।
शंख को कितनी बार बजाना चाहिए?
शंख को ३ बार बजाना चाहिए , यह क्रम आकाश , पृथ्वी एवं पाताल को सम्बोधित करते हैं।
क्या शंख को गिफ्ट करना उचित है?
शंख को किसी को गिफ्ट करने में कोई आपत्ति नहीं है अपितु गिफ्ट करना , बहुत ही उत्तम क्रिया है।
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